Anushi Agarwal
मुझे धमकी देकर गए हैं, अगर कल तक कमरा खाली नहीं किया तो मेरा सामान बाहर फेंक देंगे। मैंने तो पूरा किराया दिया है पर बीच का आदमी सारा पैसा खा गया। आप कुछ कर सकती हो तो बताओ?
एक दिन अचानक उसका फ़ोन आया।
मैंने पूछा, कौन लोग हैं, कहाँ हैं कमरा? उसने कहा, सब दस तरह के सवाल करते हैं, कोई कुछ करता नहीं है। अब मुझे जवाब ही नहीं देना। बहुत बोल लिया मैंने। कोई कुछ मदद कर सकता हो तो बताओ वरना मुझसे सवाल करना बंद करो। आपको आना हो तो आ जाना।
उसने फ़ोन काट दिया।
सब दस तरह के सवाल करते हैं, कोई कुछ करता नहीं है। अब मुझे जवाब ही नहीं देना। बहुत बोल लिया मैंने। कोई कुछ मदद कर सकता हो तो बताओ वरना मुझसे सवाल करना बंद करो।
शाम को मैं उससे मिलने गयी। मैंने यूनियन में फ़ोन किया, उन्होंने पैसा वापिस दिलाने की कोशिश की पर बात कुछ बनी नहीं। मैंने शाम को जाने से पहले फ़ोन किया तो उसने उठाया नहीं, मैं सीधे पहुँच गयी। वो मेन रोड तक आयी मुझे लेने के लिए। उसने घर बदल लिया था या फिर ये कहना ज़्यादा ठीक है कि उसे पुराने घर से निकाला जा चुका था। उसके घर का दरवाज़ा अब सड़क पर ही खुलता है। अंदर एक लकड़ी का बिस्तर, कुछ बर्तन और बाकि सामान उसने अभी खोला नहीं था। एक देवी माँ की तस्वीर थी जिस पर माला टंगी हुई थी।
मुझे डर लग रहा था कि अब तो वो और भी गुस्सा करेगी, मुझे आने में देर हो गयी। उसने बैठते हुए कहा, सुबह पुलिस के दो लोग आये थे, उन्होंने धमकाया तो मैंने घर छोड़ दिया। आप अगर कल आती ना, तो बात शायद बन जाती। पिछले दस दिन से रोज़ डरा रहे थे कि घर खाली करो। मैंने पूरा किराया दिया पर मकान मालिक तक पहुंचा नहीं। 3500 रूपए किराया और 15000 रूपए एडवांस। उधार मांग कर एडवांस दिया। और पैसा कहाँ से लाऊँ? मैं क्या करूँ अगर बीच वाला आदमी पैसा खा गया तो? मेरी क्या गलती है?
वो बैंगलोर शहर में दस साल पहले आयी थी।
दो साल पहले एक कंपनी में पैसा समय पर नहीं मिला तो मैंने जाकर मैनेजमेंट को बोल दिया था। तब से मेरा पीछा हो रहा है।
यहाँ हिंदी वालों के साथ यही होता है। पिछले दो साल से जब से इस एरिया में आयी हूँ कुछ ठीक नहीं है। अच्छी कपड़ा फैक्ट्री में नौकरी नहीं मिलती, बार-बार मुझे काम से निकाल देते हैं, घर नहीं मिलता। मुझे पता है मेरा पीछा हो रहा है। मुझ पर नज़र रखी जा रही है। कंपनी में नौकरी के लिए जाती हूँ तो मेरा आधार कार्ड साइड में रख देते हैं, क्यों? ऑनलाइन पीछा कर रहे हैं मेरा। दो साल पहले एक कंपनी में पैसा समय पर नहीं मिला तो मैंने जाकर मैनेजमेंट को बोल दिया था। तब से मेरा पीछा हो रहा है। आज भी दोपहर को मैंने देखा, एक आदमी गाड़ी से चक्कर लगा कर गया है। वो देख रहा था कि मैंने नया घर कहाँ लिया है। ये एरिया नहीं छोडूंगी मैं। आस-पास सब लोग मुझे जानते हैं, कल कुछ हुआ तो कोई गवाह तो होगा।
पहली बार मेरी मुलाकात उससे डेढ़ साल पहले हुई थी। तब भी उसने मुझे बताया था कि पैसा समय पर ना मिलने की वजह से उसने कंपनी में शिकायत कर दी थी, यूनियन का नाम ले लिया था और तब से उसे निशाना बनाया जाता है। मैंने उसे कई बार बोला है कि इस तरह किसी का ऑनलाइन पीछा किया ही नहीं जा सकता। कोई भी कपड़ा फैक्ट्री तुम पर हर वक़्त क्यों नज़र रखेगी? किसके पास इतना टाइम है कि घर तक तुम्हारा पीछा करे? लेकिन उसका कहना है क्योंकि वो हिन्दी वालों की तरह साड़ी पहनती तो उसे अजीब तरीके से देखते हैं। क्योंकि वो आवाज़ उठाती है उसे कंपनी में लंच के वक़्त भी किसी और लड़की के साथ बैठने नहीं देते। उसने मुझसे पूछा था, बोलना गलत है क्या?
आपको लगता है मैं मेन्टल हूँ? नहीं आप बताओ, इतने दिनों से आप मुझसे बात कर रही हो, आपको लगता है मैं मेंटल हूँ? सब कहते हैं कि मैं बहुत बोलती हूँ मेंटल लोगों की तरह।
लॉकडाउन के दिनों में उसका एक दिन अचानक फ़ोन आया और उठाते ही उसने सीधा मुझसे ये पूछा।
उसने कहा, वो कहते हैं मुझे अच्छे से काम करना नहीं आता। आपको पता है, मैं बचपन से सिलाई करती आ रही हूँ। पर अब सभी ऐसा बोलते हैं तो मशीन को छूते हुए भी मेरे हाथ कांपते हैं।
उसका ये सवाल, मैं मेंटल हूँ क्या, मेरे साथ रह गया। उसकी आवाज़ में झुंझलाहट थी, एक अकेलापन।
आज जब मैं कमरे में बैठी थी तो उसने कहा, इस शहर में हम काम करने आये हैं ना, तो शांति से काम क्यों नहीं करने देते | मुझे अपना काम बहुत अच्छे से आता है। गांव में अगर दस साल सिलाई का काम किया होता तो आज अपना बिज़नेस होता। शहर में तो जब तक शरीर है तभी तक काम कर सकते हैं। एक टाइम के बाद शरीर काम नहीं करेगा तो वापिस चले जायेंगे। मन भी नहीं करेगा यहाँ रुकने का। लेकिन यहाँ के लोकल लोगों को लगता है कि हम कब्ज़ा कर लेंगे ।
उसने आज मुझे बताया कि वो दरअसल शहर आना ही नहीं चाहती थी। उसने कहा, “मैं यहाँ कोई पैसे का सपना लेकर नहीं आयी थी। अपने पति की वजह से आयी। और अब वो गांव वापिस नहीं जाना चाहता। कितने साल हो गए मैं घर नहीं गयी। शादी-ब्याह, मौत, लॉकडाउन- सब हो गया लेकिन मैं घर नहीं गयी। लॉकडाउन में बहुत लोग घर गए, लेकिन हम यहीं थे। अच्छा ही था, हम लूडो खेलते थे, घर पर ज़्यादा रहते थे। कंपनी से बहुत लोग घर चले गए तो यहाँ काम भी था। लेकिन इस बीच मैंने 2 -3 कंपनी बदल लीं, ज़्यादातर पीस वर्क ही था। सब साज़िश करके मुझे काम से निकाल देते हैं, उनको मेरे बोलने से डर लगता है। आगे क्या होगा मालूम नहीं, लेकिन इस शहर से अब मेरी लाश ही जाएगी। अपने पति के पीछे यहाँ आयी थी, एक दिन इसके पीछे ही यहाँ मर जाउंगी।
उसने दरवाज़े के बाहर सड़क की तरफ इशारा करते हुए कहा।
वापिस जाने का रास्ता नहीं है अब। पर इतना पता है कि बोलते-बोलते ही मरूंगी। मुझे अब चुप रहना नहीं आता ।
***
मुझे लगा था उस दिन के बाद वो मुझे फिर कभी कॉल नहीं करेगी लेकिन सारे गुस्से, झगड़े,उम्मीद के बीच हमारी बातचीत आज भी जारी है। बैंगलोर में 5 लाख से ज़्यादा कपड़ा मज़दूर हैं जिसमें से ज़्यदातर औरतें हैं। 2020 में जब लॉकडाउन शुरू हुआ तो सभी कपनियां बंद हो गयी, मज़दूरों को घर में या हॉस्टल में रहना पड़ा बिना किसी जानकारी के कि फैक्ट्री वापिस कब खुलेंगी। कंपनियों ने खाना या पैसे की कोई ख़ास मदद नहीं की। किराया ना देने की हालत में कई मज़दूर गांव वापिस चले गए। कंपनी मालिकों ने कहा कि कई ब्रैंड ने आर्डर वापिस ले लिए जिसके चलते वो तन्खाव्ह देने की हालत में नहीं हैं, उन्होंने सरकार से मदद मांगी। मई 2020 तक कुछ कपनियां वापिस खुल गयीं। लेकिन कुछ ही मज़दूरों को काम पर वापिस बुलाया गया। और उन्हें भी काम पर जाने के लिए मीलों पैदल चलना पड़ा क्योंकि बस सुविधा बंद थी। लेकिन नौकरी बचाने के चक्कर में सब चल कर गए। 2021 के लॉकडाउन में कंपनियों को कम मज़दूरों के साथ काम करने की मंज़ूरी मिली लेकिन कोरोना के बढ़ते केस के चलते एक-एक करके सभी कम्पनियाँ बंद हो गयी। कपड़ा मज़दूर फिर पिछले साल की तरह मुश्किल में पड़ गए। लॉकडाउन की वजह से कंपनियां अचानक बंद हुई और कई मज़दूरों को पुरानी तनख्वाह नहीं मिली। वो आगे मिलेगी या नहीं ये पक्का नहीं है। पिछले साल जो मज़दूर घर वापिस गए थे उसमें से कई वापिस नहीं आये। और कई मज़दूर जो अभी भी बैंगलोर में हैं । वो घर वापिस जाने की तैयारी कर रहे हैं।