दर्द ही दर्द को काटता है
Anushi Agarwal
“मैंने अपना हाथ काट लिया”, सुबह-सुबह उसका फ़ोन आया।
सुनकर पहले तो मुझे डर लगा, लेकिन फिर एक सेकंड के लिए लगा कहीं ये मज़ाक तो नहीं कर रही है।
उसकी इस बारे में मज़ाक करने की आदत है।
उसने पहले कई बार अपना हाथ काटा है और इसकी कहानी वो हर बार बड़े मज़े से सुनाती है।
एक बार हम महिला कमीशन के ऑफिस के बाहर एक प्रोटेस्ट में मिले थे। सेक्स वर्कर के साथ सड़क पर पुलिस की मार-पीट के खिलाफ ये प्रोटेस्ट हो रहा था। तब वहां एक साइड में लेजा कर उसने मुझे अपनी कलाई दिखाई थी, उस पर ब्लेड से काटने के कई निशान थे। ढ़ेर सारी पतली-पतली लाइन, एक के बाद एक, चूड़ियों की तरह। मैं देख कर चौंक गयी थी कि कोई इतनी बार हाथ कैसे काट सकता है। एक-एक लाइन जैसे वो सब बता रही थी जो वो किसी से कह नहीं पायी। तब उसने मुझसे कहा था, तुम्हें कभी हाथ काटना हो तो मुझे फ़ोन करना, मैं एक्सपर्ट हूँ इसमें। और प्रोटेस्ट के नारों के शोर के बीच हम दोनों ज़ोर से हसने लगे।
“मैंने अपना हाथ काट लिया।”
“यार…”
“मुझसे रुका नहीं गया। उसने मेरा दिल तोड़ा है, झूट बोला। कुछ और समझ नहीं आया कि क्या करूँ। दूसरी औरत के साथ उसका फोटो देखा मैंने। बहुत गुस्सा आया तो हाथ काट लिया।”
“पर अपना क्यों काटा, उसका काट देंती। अभी डॉक्टर के यहां जाओ।”
“पागल हो? अब मैंने हाथ काट लिया ना, अब सब ठीक हो जाएगा। इसके बारे में बहुत जानती हूँ मैं। मुझे पता है इसके बाद क्या करना है।”
“अच्छा, क्या करना होता है?”
“हल्दी लगाउंगी तो खून निकलना बंद हो जायेगा।”
“अभी- भी खून निकल रहा है?”
“हाँ। रुको, फोटो भेजती हूँ।”
हाथ पर कई सारी खून की पतली-पतली लाइन। मुझसे देखा नहीं गया।मेरे देखते ही उसने वो फोटो फ़ौरन डिलीट कर दिया।
“रुको, मैं कलाई पर हल्दी लगा कर तुम्हे फ़ोन करती हूँ।”
उसने फ़ोन काट दिया।
मुझे समझ नहीं आया कि मुझे क्या करना चाहिए। क्या वो सच में ठीक है?
क्या मुझे अभी उससे मिलने के लिए जाना चाहिए?
लॉकडाउन हुआ तो क्या हुआ?
वो मैजेस्टिक बस स्टैंड के पास सेक्स वर्क का काम करती है। पिछले साल मेरी बात उससे फ़ोन पर शुरू हुई जब कोरोना और लॉकडाउन के चलते सेक्स वर्क का काम एकदम बंद हो गया। उस वक़्त ना कस्टमर थे, ना पैसा। सड़क पर निकलो तो पुलिस जाने नहीं देती थी। ऑनलाइन कुछ काम शुरू हुआ तो जीपे या पेटीएम जैसे एप्प से टाइम पर पैसे मिलने की कोई गारंटी नहीं थी। पूरे टाइम घर पर बंद रहने की वजह से घर के किराये और खाने-पीने की दिक्कत तो हुई ही, साथ ही कई घरेलू हिंसा के मामले भी सुनाई दिए। 2020 में अचानक लॉकडाउन शुरू होने की वजह से मज़दूरों की दिक्कत के बारे में काफी बात हुई लेकिन उस वक़्त भी सेक्स वर्कर को मज़दूर की तरह नहीं देखा गया। इसी सिलसिले में मैंने एक इंटरव्यू के लिए उसे फ़ोन किया था। तब से हमारी मुलाकात मुश्किल से एक ही बार हुई है पर बात लगातार होती है।
वापिस उसका फ़ोन आया।
“तुम ठीक हो?”
“हाँ, मुझे कुछ नहीं होने वाला।”
“दर्द हो रहा है?”
“अरे, दर्द का तो कल पता चलेगा। आज तो पिक्चर थी, कल पता चलेगा कि इस पिक्चर का ट्रेलर कैसा था।मुझे पता है कितना काटने से क्या होता है। जो लोग स्यूसाइड करते हैं ना उन्हें पता नहीं होता कि नस कहाँ है। दुबारा काटने के लिए ज़िंदा नहीं रहते।और कुछ लोगों को पीने से नशा होता है मुझे हाथ काटने से नशा होता है। इसके बाद सब ठीक लगने लगता है।”
फिर मुझे समझ आया। उसने अपना हाथ मरने के लिये नहीं काटा।वो मरना नहीं चाहती।हाथ काटने के बाद उसे हल्का महसूस होता है।
“वो इस लॉकडाउन में और कहाँ जायेगा। मेरे साथ ही रह रहा है।रोज़ लगता है या तो मैं कहीं चली जाऊं या इसे घर से निकाल दूँ।बस लॉकडाउन ख़त्म होने का इंतज़ार कर रही हूँ।”
पता नहीं वो ऐसा कर पायेगी या नहीं।
उसने उस आदमी के साथ कई प्लान बनाये हैं, कैसे वो कुछ सालों में उधार चुका कर धंधा छोड़ देगी।
उसके बच्चे होंगे।
वो नौकरी करेगी।
इन सब प्लान में वो आदमी शामिल था।
उसने अपना हाथ मरने के लिये नहीं काटा। वो मरना नहीं चाहती। हाथ काटने के बाद उसे हल्का महसूस होता है।
आपने खून भरी मांग फिल्म देखी है? उसमे रेखा का किरदार प्लास्टिक सर्जरी करवा कर वापिस आता है अपने आशिक़ से बदला लेने के लिए। वो मुझे कई बार उस रेखा की याद दिलाती है। जो स्टाइल में लोगों को मज़ा चखाती है।
अगले दिन फ़ोन पर उसने कहा
“पर मैं दिल से उसे कभी माफ नहीं करूंगी।
लॉकडाउन में मेरा काम नहीं चल रहा है तो मुझे ताने मरता है, इतने साल जो मैंने उसे पाला है उसका क्या? उसको पता नहीं है, उससे बड़ी कमीनी हूँ मैं। मुझे बोलता है, तू और वो औरत साथ में क्यों नहीं रह सकते? अब मैं अपना आशिक़ बनाउंगी और उसको बोलूंगी, तू और वो साथ में क्यों नहीं रह सकते।देखो आगे क्या-क्या होता है।”
मैं लॉकडाउन की वजह से उससे मिल नहीं पायी।पर उसकी कटी हुई कलाई मुझे याद है। हाथ से ज़्यादा लाइन उसकी कलाई पर हैं।वो कहती है कि हाथ काटने के बाद उसे सब ठीक लगने लगता है।कहते हैं ना दर्द ही दर्द को काटता है।
उसका एक सपना है, वो एनजीओ में नौकरी करना चाहती है।
“बैठने वाला काम नहीं होगा मुझसे। बाहर जाकर लोगों से मिलने का काम हो तो बताओ।”
काफी कोशिश करने के बाद एक संस्था में नौकरी की बात हुई है। फिर सवाल आया कि उसके काम की पहचान संस्था के बाकी साथियों को बतायी जाए या नहीं।
“पहले ही बताना ठीक है, वरना बाद में सब गलत समझते हैं।पता होते हुए उन्होंने कुछ किया तो मैं हैंडल कर लूँगी।”
जल्द ही उसकी नौकरी शुरू होने वाली है। देखो आगे क्या-क्या होता है।